NCERT Answers of Class X, Kshitij Bhag 2 Yatindra Mishra | Naubat Khane Me Ibadat नौबतखाने में इबादत

 

Class X, Naubatkhane Me Ibadat by Yatindra Mishra

नौबतखाने में इबादत

Class 10 NCERT Hindi (Kshitij Bhag 2)

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Class 10 Hindi - Yatindra Mishra - नौबतखाने में इबादत - Solutions of Ncert Cbse Kshitij Bhag 2 Textbook Questions

Question 7: बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनके संगीत साधना को समृद्ध किया।
Answer: निम्नलिखित व्याक्तियाँ व यह कुछ ऐसी घटनाएं हैं जो बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी हुयी हैं और उनकी संगीत साधना को प्रेरित किया -
* बिस्मिल्ला खाँ के दोनों मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श देश के जाने-माने शहनाई वादक थे। उनका शहनाई वादन सुनकर बिस्मिल्ला खाँ के मन में भी प्रेरणा जगी।
* बिस्मिल्ला खाँ के नाना भी अच्छी शहनाई बजाया करते थे। उनकी शहनाई की मधुरता से नन्हे-से बिस्मिल्ला को लगता था कि इसमें मिठास ज़रूर होगी, इसलिए वे उसे चखकर देखते थे।
* रियाज़ के लिए बिस्मिल्ला जिस रास्ते से गुज़रते थे, वह रसूलनबाई और बतूलनबाई के यहां ज़े होकर जाता था। वहाँ वे ठुमरी, टप्पे, दादरा आदि सुनते तो उन्हें बड़ा आनंद आता था। बिस्मिल्ला खाँ को शुरुआती जीवन में संगीत के प्रति आसक्ति उन्हीं गायिका बहनों को सुनकर हुई।
इन व्यक्तियों और घटनाओं के साथ ही काशी की संगीत परंपरा ने भी बिस्मिल्ला खाँ की संगीत साधना को समृद्ध किया।  

रचना और अभिव्यक्ति
Question 8: बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया ?
Answer: बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ हमें प्रभावित करती हैं -
१. साम्प्रदायिक स्वभाव - बिस्मिल्ला खाँ के मन में धर्म या जाति के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं था। वे जिस श्रद्धा के साथ बाबा विश्वनाथ और बालाजी के मन्दिरों में शहनाई बजाते थे, उसी श्रद्धा के साथ मुहर्रम के अवसर पर मातमी सुर भी बजाते थे। इस प्रकार वे साम्प्रदायिक सौहार्द से परिपूर्ण भारतीय संस्कृति के प्रतिक थे।
२. निष्काम भाव से संगीत साधना - ईश्वर से प्रार्थना करते समय वे कभी भी धन संपत्ति की याचना नहीं की, बल्कि सच्चे सुर का वरदान ही मांगते रहे।
३. सादगी भरा जीवन - विश्व प्रसिद्ध संगीतकार तथा भारतरत्न होने के बावजूद उनका जीवन सादगी से परिपूर्ण था।
४. निश्छल स्वभाव - उनके मन में किसी प्रकार का दुराव-छिपाव नहीं था। अपने बचपन में फ़िल्म देखने की बात से लेकर रसुलनबाई और बतुलनबाई के संगीत से प्रेरणा लेने तक की बात वे निःसंकोच कहते थे।
५. विनम्रता से परिपूर्ण - उनका व्यक्तित्व विनम्रता से परिपूर्ण था। शहनाई के सुरों के बादशाह होने के बावजूद वे कहते थे कि मुझे अब तक सुरों को बरतने की तमीज़ नहीं आई।
६. संगतियों के प्रति आदर-भाव - बिस्मिल्ला खाँ के मन में संगतियों के प्रति अत्यंत आदर भाव था। वे सदैव इस बात पर अफ़सोस प्रकट करते थे कि गायक लोग संगतियों का आदर नहीं करते।

Question 9: मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
Answer: मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ का अत्यधिक जुड़ाव था। मुहर्रम के महीने में वे हज़रत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति पूरे दस दिनों तक शोक मनाते थे। उन दिनों में वे न तो शहनाई बजाते थे और न ही किसी संगीत कार्यक्रम में सम्मिलित होते थे।
मुहर्रम की आठवीं तारीख को बिस्मिल्ला खाँ खड़े होकर ही शहनाई बजाते थे।
वे बनारस के दालमंडी में फातमान के लगभग आठ किलोमीटर की दूरी तक रोते हुए नौहा बजाते पैदल ही जाते थे। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती थी। उस समय एक महान कलाकार का सहज-साधारण मानवीय रूप देखकर मन में उनके प्रति अपार श्रद्धा-भाव उत्पन्न हो जाती थी।

Question 10: बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
Answer: उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ शहनाई बजाने वाले एक महान कलाकार थे। उन्होंने अपनी कला को धन उपार्जन का साधन कभी नहीं बनाया। इसीलिए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारतरत्न' से भी नवाजा गया।
वे नमाज के बाद सज़दे में प्रार्थना करते थे - "मेरे मालिक एक सुर बख़्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।
उन्होंने कभी भी अपनी कला को पूर्ण नहीं माना। वे हमेशा यही सोचते थे कि सातों सुरों को बरतने की तमीज़ उन्हें सलीके से अभी तक क्यों नहीं आई।
बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे इसीलिए वे अपनी कला को ईश्वरीय देन मानते थे और उसका उपयोग ईश्वर की आराधना (काशी बाबा विश्वनाथ व बालाजी) एवं हज़रत इमाम हुसैन के प्रति शोक मानाने में करते थे। जब भी लोग उनकी कला की प्रशंसा करते तो वे उसे अपनी नहीं बल्कि ईश्वर की प्रशंसा मानते थे।
बिस्मिल्ला खाँ ने जीवन में हमेशा अपनी कला को महत्व दिया, धन-दौलत या पहनावे को नहीं।अंत तक उनके अंदर संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा बनी रही।
इन्हीं कारणों से हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।

भाषा-अध्ययन
Question 11: निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए -
(क) यह ज़रूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे सहारे शहनाई को फूँका जाता है।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है।
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।
(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
Answer: (क) यह जरूर है - प्रधान उपवाक्य।
शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं - आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(ख) रीड अंदर से पोली होती है - प्रधान उपवाक्य।
जिसके सहारे सहारे शहनाई को फूँका जाता है - आश्रित विशेषण उपवाक्य।
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है - प्रधान उपवाक्य।
जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है - आश्रित विशेषण उपवाक्य।
(घ) उनको यकीन है - प्रधान उपवाक्य।
कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा - आश्रित संज्ञा उपवाक्य।
(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है - प्रधान उपवाक्य।
जिसकी गमक उसी में समाई है - आश्रित विशेषण उपवाक्य।
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है - प्रधान उपवाक्य।
पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा - आश्रित संज्ञा उपवाक्य।

Question 12: निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए -
(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अदभुत परम्परा है।
(ग) धत्! पगली है भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
Answer: (क) यही वह बालसुलभ हँसी में जिसमे कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक परम्परा है जो प्राचीन एवं अदभुत है।
(ग) धत्! पगली ई जो भारतरत्न हमको मिला है, वह शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को प्रेरणा देता रहा कि वे एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहें।

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